स्पीड पोस्ट दिनांक
सेवा में,
माननीय गृह मंत्री महोदय,
गृह और न्याय मंत्रालय, भारत सरकार
विषय: कृपया
नारीवाद के वजह से हिंदू परिवारों को विलुप्त होने से बचाया जाए
आदरणीय महोदय,
सेव इंडियन फेमिली 40 से अधिक गैर सरकारी संगठनों के समूह का प्रतिनिधित्व करता हैं, यह 2005 से परिवार और वैवाहिक जीवन में सद्भाव के लिए काम कर
रहे हैं| ये 11 साल में, 1 लाख से अधिक
परिवारों को नि:शुल्क मदद साप्ताहिक बैठकों के माध्यम से और 20 लाख से अधिक परिवारों की मदद इंटरनेट के माध्यम से की है।
हिंदू परंपराओं को रूढ़िवादी बता कर, पश्चिमी संस्कृति हमारे परिवार प्रणाली में गहरा प्रवेश कर गई है और पश्चिमी
दुनिया के दबाव ने ही हमारे परिवार कानूनों को बदल दिया है। दुर्भाग्य से, युवा पीढ़ी को भी हमारी समृद्ध हिन्दू संस्कृति का 'रूढ़िवादी' बताकर पाश्चात्य संस्कृति में बदल दिया गया है।
हमारे भारतीय परिवारों और हिंदू संस्कृति को खत्म करने के गलत इरादों की
पहचान करने और इन ताकतों को बंद करने का समय आ गया है। एक तरफ वे, हिंदुओं के खिलाफ झूठी जानकारी फैला के हिंदू संस्कृति को
रूढ़िवादी बुला रहे हैं और खुद को प्रगतिशील रूप में प्रस्तुत करके हिन्दूओं में
ग्लानि की भावना को प्रेरित रहे हैं|
इन में से अधिकांश हिंदू विरोधी ताकतों ने 'लिंग' को ध्यान क्षेत्र
और 'लिंग भेद' छल की पद्धति के
रूप में इस्तेमाल किया है। दुर्भाग्यवश, इन ताकतों को आज तक दहेज और घरेलु हिंसा जैसे लगभग 50 से अधिक लिंग पक्षपातपूर्ण
कानून पारित करने में सफलता मिल गई है। यह हमारी परिवार प्रणाली की जड़ों में
सफलता पूर्वक गहरा प्रवेश करने के बाद पुरुषों को बिना किसी कारण के अधिक से अधिक
अपराधियों के रूप में दिखा रहे हैं| यह जानबूझकर निर्मित हुए अंतर से, कुछ नारीवादी संगठनों यहां तक कि स्वतंत्र भारत के संविधान का अनादर भी किया
है।
पश्चिमी शक्तियां, जो 1947 में भारत को आजाद होने से रोक नहीं सकी थी, अब नारीवाद के माध्यम से हिंदू परिवारिक प्रणाली का भारी
विनाश कर रही है। यह तथ्य मात्र इन नारीवादी संगठनों के धन स्रोतों को देखकर
स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है।
अब हम हिंदू परिवारों में निम्नलिखित
प्रवृत्ति देख रहे हैं:
Ø राष्ट्रीय आपराधिक रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते है कि पिछले 14 वर्षों में भारत
में 13 लाख से अधिक पुरुष आत्महत्या कर चुके हैं, जिनमें से 85% से अधिक हिंदू पुरुष हैं (यह संख्या महिला आत्महत्या से 1.8 गुना है)
Ø राष्ट्रीय आपराधिक रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े
बताते है कि पिछले 14 वर्षों में भारत में 8.3 लाख से अधिक पति
आत्महत्या कर चुके हैं, जिनमें से 8.3 लाख से अधिक पति हिंदू हैं (यह संख्या पत्नी
को आत्महत्या के लगभग दो गुना है)
Ø राष्ट्रीय आपराधिक रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते है कि पिछले 14 वर्षों में, 26 लाख से अधिक पुरुष, 6 लाख महिला एवं 20000 नाबालिगों, लिंग पक्षपातपूर्ण कानूनों (दहेज कानून) के नाम पर गिरफ्तार
किए गए हैं| हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इनमे से 27 लाख से अधिक हिंदू पुरुष, महिला व बच्चे गिरफ्तार किए गए
हैं|
Ø लिंग पक्षपातपूर्ण कानून और विवाहित पुरुष विरोधी बनने की
वजह से हिंदू लड़के विवाह से परहेज कर रहे हैं।
Ø अधिक से अधिक हिंदू लड़के भारत से बाहर पलायन कर रहे हैं|
Ø अधिक से अधिक हिंदू लड़के लिव-इन रिश्तों को पसंद कर रहे
हैं।
Ø अधिक से अधिक हिंदू वरिष्ठ नागरिक, बहु की क्रूरता की वजह से वृद्धाश्रम देख रहे हैं।
राष्ट्रीय आपराधिक रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े से एक बात स्पष्ट रूप से साबित हो चुकी है कि, भारत में नारीवादी आंदोलन के माध्यम से पश्चिमी शक्तियां
खुद को प्रगतिशील और हिन्दू संस्कृति को प्रतिगामी करार करने के द्वारा सदियों
पुरानी हिन्दू संस्कृति पर हमला किया जा रहा है|
पूर्व
राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने भी भारतीय दंड सहिंता की धारा 498ए के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए इसे
देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। प्रतिभा पाटिल के मुताबिक “इस तरह की घटनाएं सामने आई हैं, जिसमें महिलाओं की भलाई के लिए बनाए गए
कानूनी प्रावधानों को तोड़ मरोड़ कर आपसी बदला लेने के लिए दुरुपयोग किया
जा रहा है। जो कानून महिलाओं की सुरक्षा के लिए बना है अगर वह दुरुपयोग
का उपकरण बन जाए तो यह दुरभाग्यपूर्ण है”
भारतीय सविधान मैं महिला और पुरुष को समान
अधिकार दिए गए है ! पुरुषो कि तुलना मैं महिलाओ को हर छेत्र मैं समान रूप से
आरक्षण भी दिया गया है , रोज़गार के भी
समान अवसर दिए गये है ! एक पुरुष जितना पढ़ा लिखा होता है औरत भी उतनी ही पढ़ी लिखी
होती है! जब औरत बिना किसी कारण के अपने ससुराल को छोड़कर पीहर चली जाती है और
ससुराल वालो पर दहेज प्रताड़ना का झूठा केस दर्ज करवा देती है और ससुराल आने के लिए
मना करती है तो उसे भरण पोषण (हर्ज़ा खर्चा) क्यों दिलाया जाता है! ये न्याय योजना के लिए सबसे निंदनीय बात है! पत्नी अपने पति
के साथ पतित्व का धर्म निभा ही नहीं रही, और उसे घर बेठे
जिंदगी भर हर्ज़ा खर्चा देते रहो भले ही पति बेरोज़गार हो!
आज के ज़माने में औरत खुद इतनी काबिल है कि वह खुद कमा के अपना भरण पोषण कर
सकती है!
माननीय
सर्वोच्च न्यायालय तो इस कानून को “लीगल
टैरीरिज्म” (कानूनी आतंकवाद ्ञा तक दे चुका है। साल 2008 में
दहेज मामले में ही एक सुवनाई के दौरान जस्टिस अजीत पसायत और एच के सेमा ने 498ए को कानूनी आतंकवाद की
संज्ञा देते हुए कहा था, “जांच
एंजसियों और अदालतों को पहरेदार की भूमिका निभानी चाहिए न कि रक्त पिपासु की
निश्चित रूप से ही उनका प्रयास यह देखने के लिए होना चाहिए कि कोई भी निर्दोष
व्यक्ति आधारहीन और दुरभावनापूर्ण आरोपों का शिकार न बने”
जब मामला एक
बार दर्ज हो गया तो यह समझौता थाने में नहीं होना चाहिए, यह फैमिली
कोर्ट को देखना है कि क्या करना है। लेकिन थाने में समझौता और हर्जाना
दिलवाना, यह सत्ता
समर्थित जबरन वसूली का एक नायाब उदाहरण है। इसका मतलब यह भी नहीं है कि देश में महिलाओं का दहेज के लिए
उत्पीडन नहीं हो रहा है, असलियत यह है कि जिनका वाकई उत्पीडन हो रहा है
उनमें से ज्यादातर महिलाएं आज भी थाने और अदालत की पहुंच से बहुत दूर
हैं। दरअसल इस कानून के
दुरुपयोग के लिए महिला से ज्यादा पुलिस और वकील ही दोषी हैं।
पीड़ित सांसों और ननदों के संगठन मदर्स एंड सिस्टर्स इनीसेटिव की अध्यक्ष डा. अनुपमा कहती हैं, “धारा 498ए लड़की के साथ साथ पुलिस, वकील और जजों की भी कमाई का एक बड़ा जरिया है। पुलिस और वकील तो लड़कियों को 498ए में मामला दर्ज कराने के लिए उकसाते हैं, एक बार मामला दर्ज हो गया तो पुलिस पति पक्ष से जम कर पैसा वसूलती है। हमने हाल ही में दिल्ली की अदालतों में एक सर्वे किया तो पाया कि हर रोज जमानत की सुनवाई के लिए जितने मामले आते हैं उनमें से एक तिहाई मामले 498ए के जमानत के होते हैं। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक हर साल महिलाओं के खिलाफ अपराध के जितने मामले दर्ज होते हैं उनमें से 40 फीसदी से ज्यादा मामले 498ए के ही होते हैं। जेल में 498ए के तहत केवल पुरुष ही नहीं, बड़े पैमाने पर महिलाएं (सास- ननद) भी बंद हैं। इनकी पीड़ा यह है कि जब ये निर्दोष साबित होकर घर वापस लौटती हैं तो भी समाज इन्हें बुरा ही समझता है।
आल इंडिया मदर-इन-ला प्रोटेक्शन फोरम की अध्यक्ष नीना धूलिया कहती हैं, “ दहेज के झूठे मामले में फंसा पूरा परिवार अवसाद का शिकार हो जाता है। समाज की नजरों में उनकी प्रतिष्ठा चली जाती है, ऐसे में इन परिवारों की बेटे- बेटियों की शादी नहीं हो पाती। कई मामलों में तो ऐसा भी देखा गया है कि दहेज के मामले में फर्जी तरीके से फंसाए पति के भाई और दोस्त इस हादसे से इतना दहल जाते हैं कि वे शादी से डरने लगते हैं और आजीवन कुंवारे रहने की कोशिश करते हैं। भविष्य में इससे पूरा सामाजिक ढांचा ही ढह जाएगा.”
दहेज कानूनों के दुरुपयोग के शिकार पतियों, सासो और ननदों ने एक जुट होकर अपना संगठन भी बना लिया है। इस समय देश में इनके पचास से ज्यादा संगठन हैं। सेव इंडियन फेमिली फाउंडेशन इनमें सबसे बड़ा और विशाल नेटवर्क वाला संगठन है। पीड़ित पति तो अब 19 नवंबर को “पति दिवस” के रूप में मनाने लगे हैं, वे हर शनिवार और रविवार को दिल्ली सहित दूसरे महानगरों में एक जगह पर इकठ्ठा होते हैं और एक दूसरे का दुख दर्द बांटते हैं। पतियों के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों का मानना है कि भारत में महिलाओं के हक में जो भी कानून हैं या फिर बनाए जा रहे हैं वह इतने “अव्यवहारिक और बायस्ड” हैं कि उनका दुरुपयोग होना तय है।
जेंडर ह्यूमन राइट सोसायटी के अध्यक्ष संदीप भरतिया कहते हैं, कि “इन कानूनों के निर्माण में महिला संगठन और फेमिनिस्ट लॉबी की ही प्रमुख भूमिका होती है, लिहाजा ये कानून पूरी तरह से “जेंडर बायस्ड” होते हैं” सेव इंडियन फेमिली फाउंडेशन के संस्थापक सदस्य गुरुदर्शन सिंह कहते हैं, कि “अगर 498ए मे केवल इतना ही प्रावधान जोड़ दिया जाए कि यदि अदालत में साबित हो जाता है कि लड़की ने पति पर गलत आरोप लगाया था, तो लड़की को भी सजा मिलनी चाहिए, इस धारा का दुरुपयोग काफी हद तक रुक जाएगा”
आखिर इसके दुरुपयोग की वजह क्या है, मदर्स एंड सिस्टर्स इनीसिएटिव की प्रवक्ता किरण कुकरेजा कहती है, कि “बहू अब जिम्मेदारियों की बजाए ससुराल में ढ़ेर सारे कानूनी अधिकार ले कर आती है, वह पति और उसके घर वालों से सुख सुविधा की सब चीजें चाहती है लेकिन जिम्मेदारी नहीं” कुकरेजा आगे कहती हैं, कि “घर टूटने की एक बड़ी वजह खुद महिला आयोग और नारीवादी संगठन ही है, उनके लिए केवल बहू ही महिला है सास और ननद नहीं, वे तो हमारी बात सुनने को भी तैयार नहीं” , तो पति परिवार कल्याण समिति के सचिव ब्रिजेश अवस्थी 498ए के दुरुपयोग के लिए यह तर्क देते हैं, “आज लड़कियों की यह मानसिकता बन गई है कि वह ससुराल में ऐसों आऱाम से रहेगी, वह ससुराल में मुक्त जीवन जीना चाहती है, जब उस पर प्रतिबंध लगता है तो यह स्थित पैदा होती है”
पीड़ित सांसों और ननदों के संगठन मदर्स एंड सिस्टर्स इनीसेटिव की अध्यक्ष डा. अनुपमा कहती हैं, “धारा 498ए लड़की के साथ साथ पुलिस, वकील और जजों की भी कमाई का एक बड़ा जरिया है। पुलिस और वकील तो लड़कियों को 498ए में मामला दर्ज कराने के लिए उकसाते हैं, एक बार मामला दर्ज हो गया तो पुलिस पति पक्ष से जम कर पैसा वसूलती है। हमने हाल ही में दिल्ली की अदालतों में एक सर्वे किया तो पाया कि हर रोज जमानत की सुनवाई के लिए जितने मामले आते हैं उनमें से एक तिहाई मामले 498ए के जमानत के होते हैं। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक हर साल महिलाओं के खिलाफ अपराध के जितने मामले दर्ज होते हैं उनमें से 40 फीसदी से ज्यादा मामले 498ए के ही होते हैं। जेल में 498ए के तहत केवल पुरुष ही नहीं, बड़े पैमाने पर महिलाएं (सास- ननद) भी बंद हैं। इनकी पीड़ा यह है कि जब ये निर्दोष साबित होकर घर वापस लौटती हैं तो भी समाज इन्हें बुरा ही समझता है।
आल इंडिया मदर-इन-ला प्रोटेक्शन फोरम की अध्यक्ष नीना धूलिया कहती हैं, “ दहेज के झूठे मामले में फंसा पूरा परिवार अवसाद का शिकार हो जाता है। समाज की नजरों में उनकी प्रतिष्ठा चली जाती है, ऐसे में इन परिवारों की बेटे- बेटियों की शादी नहीं हो पाती। कई मामलों में तो ऐसा भी देखा गया है कि दहेज के मामले में फर्जी तरीके से फंसाए पति के भाई और दोस्त इस हादसे से इतना दहल जाते हैं कि वे शादी से डरने लगते हैं और आजीवन कुंवारे रहने की कोशिश करते हैं। भविष्य में इससे पूरा सामाजिक ढांचा ही ढह जाएगा.”
दहेज कानूनों के दुरुपयोग के शिकार पतियों, सासो और ननदों ने एक जुट होकर अपना संगठन भी बना लिया है। इस समय देश में इनके पचास से ज्यादा संगठन हैं। सेव इंडियन फेमिली फाउंडेशन इनमें सबसे बड़ा और विशाल नेटवर्क वाला संगठन है। पीड़ित पति तो अब 19 नवंबर को “पति दिवस” के रूप में मनाने लगे हैं, वे हर शनिवार और रविवार को दिल्ली सहित दूसरे महानगरों में एक जगह पर इकठ्ठा होते हैं और एक दूसरे का दुख दर्द बांटते हैं। पतियों के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों का मानना है कि भारत में महिलाओं के हक में जो भी कानून हैं या फिर बनाए जा रहे हैं वह इतने “अव्यवहारिक और बायस्ड” हैं कि उनका दुरुपयोग होना तय है।
जेंडर ह्यूमन राइट सोसायटी के अध्यक्ष संदीप भरतिया कहते हैं, कि “इन कानूनों के निर्माण में महिला संगठन और फेमिनिस्ट लॉबी की ही प्रमुख भूमिका होती है, लिहाजा ये कानून पूरी तरह से “जेंडर बायस्ड” होते हैं” सेव इंडियन फेमिली फाउंडेशन के संस्थापक सदस्य गुरुदर्शन सिंह कहते हैं, कि “अगर 498ए मे केवल इतना ही प्रावधान जोड़ दिया जाए कि यदि अदालत में साबित हो जाता है कि लड़की ने पति पर गलत आरोप लगाया था, तो लड़की को भी सजा मिलनी चाहिए, इस धारा का दुरुपयोग काफी हद तक रुक जाएगा”
आखिर इसके दुरुपयोग की वजह क्या है, मदर्स एंड सिस्टर्स इनीसिएटिव की प्रवक्ता किरण कुकरेजा कहती है, कि “बहू अब जिम्मेदारियों की बजाए ससुराल में ढ़ेर सारे कानूनी अधिकार ले कर आती है, वह पति और उसके घर वालों से सुख सुविधा की सब चीजें चाहती है लेकिन जिम्मेदारी नहीं” कुकरेजा आगे कहती हैं, कि “घर टूटने की एक बड़ी वजह खुद महिला आयोग और नारीवादी संगठन ही है, उनके लिए केवल बहू ही महिला है सास और ननद नहीं, वे तो हमारी बात सुनने को भी तैयार नहीं” , तो पति परिवार कल्याण समिति के सचिव ब्रिजेश अवस्थी 498ए के दुरुपयोग के लिए यह तर्क देते हैं, “आज लड़कियों की यह मानसिकता बन गई है कि वह ससुराल में ऐसों आऱाम से रहेगी, वह ससुराल में मुक्त जीवन जीना चाहती है, जब उस पर प्रतिबंध लगता है तो यह स्थित पैदा होती है”
इस कानून का असर केवल पुरुष और महिलाओं
पर ही नहीं पड़ रहा है, बच्चे भी इसके
शिकार हो रहे हैं. बच्चे के संपूर्ण विकास के लिए उसका माता-पिता के साथ रहना अनिवार्य है, लेकिन जिस तरह से भारत में तेजी से दहेज के मामले (पिछले पांच साल में 3,36,842) दर्ज
हो रहे हैं और पति-पत्नी अलग रह रहे हैं उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आगे चल
कर एक पीढ़ी ऐसी तैयार होगी,
जिसे मां-बाप का भरपूर प्यार नहीं मिला होगा। अमेरिका में
ऐसे बच्चों पर हुए अध्ययन चौंकाने वाले हैं, जो बच्चे
संयुक्तरूप से अपने मां-बाप के साथ रहते हैं और जो बच्चे परिवार टूटने से पिता से अलग रहते हैं, उनमें पहले बच्चों के मुकाबले घर से भागने की 32 गुनी, जेल जाने की 20 गुनी, बिहैवियरल डिसआर्डर की 20 गुनी, बलात्कार करने की 14 गुनी, स्कूल छोड़ने की नौ गुनी और आत्महत्या करने की पांच गुनी ज्यादा संभावना होती है।
संयुक्तरूप से अपने मां-बाप के साथ रहते हैं और जो बच्चे परिवार टूटने से पिता से अलग रहते हैं, उनमें पहले बच्चों के मुकाबले घर से भागने की 32 गुनी, जेल जाने की 20 गुनी, बिहैवियरल डिसआर्डर की 20 गुनी, बलात्कार करने की 14 गुनी, स्कूल छोड़ने की नौ गुनी और आत्महत्या करने की पांच गुनी ज्यादा संभावना होती है।
फिलहालतो
देश में ऐसे बच्चों की तादाद लाखों में होगी आने वाले समय में जिस तरह से पतियों के खिलाफ
और कानून बन रहे हैं, उससे ऐसे
बच्चों की तादाद घटने नहीं, बल्कि
और बढ़ने ही वाली है। ऐसे
में भारत का
एक भयावह भविष्य नजर आ रहा है। राष्ट्रीय महिला आयोग महिलाओं हक में करीब दर्जनभर
कानून और बनाने जा रही है। इनका मसौदा तैयार हो चुका है और इसे जल्दी
ही संसद में पेश किया जाएगा। जिस तरह से दहेज उत्पीड़न कानून और घरेलू
हिंसा कानून के बड़े पैमाने पर दुरुपयोग के मामले सामने आ रहे हैं। उसके मद्देनजर सरकार को ऐसी व्यवस्था
करनी चाहिए कि इन कानूनों का और प्रस्तावित नए कानूनों का किसी भी हालत में
दुरपयोग न होने पाए, वरना आने वाले समय में इसके घातक नतीजे सामने
आएंगे। नीना धूलिया कहती
हैं, “अगर इन कानूनों
का दुरुपयोग नहीं रोका गया तो इससे न केवल
विवाह नामक संस्था खत्म हो जाएगी, बल्कि
समाज स्त्री और पुरुष, दो हिस्सों
में बंट जाएगा, इससे हमारी सामाजिक व्यवस्था ही चरमरा जाएगी”
इस पत्र के माध्यम से, मैं भारत के हिंदू
नेताओं से निम्न अनुरोध करना चाहता हूँ:
1.
सरकार और संसद को भारत के संविधान का
पालन और किसी भी लिंग पक्षपाती कानून नहीं बनाने के लिए प्रस्ताव दे|
2.
सभी लिंग पक्षपातपूर्ण कानून स्क्रैप
अथवा लिंग तटस्थ कानून में बनाने के लिए सरकार को प्रस्ताव दे|
3.
भारत में नारीवादी संगठनों के हर विदेशी
निधियां को रोकने के लिए सरकार को प्रस्ताव दे।
4.
पश्चिमी दुनिया के कानूनों का आयात नहीं
करने के लिए, सभी विदेशी वित्त पोषित सर्वेक्षण को अशक्त और शून्य रखने
के लिए भारत सरकार को प्रस्ताव दे|
5.
सभी महिलाओं निकायों (महिला एवं बाल
विकास, राष्ट्रीय महिला आयोग, आदि मंत्रालय) को बदल परिवार सद्भावना केन्द्र बनाया जाना चाहिए ताकि पुरुष और
उनके माता पिता को महिला सेल के माध्यम से बल प्रयोग न हो और परिवार परस्पर
मुद्दों को हल करने में सक्षम हो, जिससे हिंदू परिवार टूटने से बचे रहे।
आप के माध्यम से भारत के कानून निर्माताओं के लिए हमारे विस्तृत प्रस्ताव
करने के लिए हमारी मदद करें।
इसी आशा के साथ हिंदुस्तान को बचाने के लिए सकारात्मक समर्थन के लिए
अपेक्षा|
धन्यवाद,
आपके आज्ञाकारी,
प्रार्थी गण
125 करोड़ भारतीयों की ओर से...
अच्छा ब्लॉग है पर पश्चिम संस्कृति को दोष न देते हुए ब्लॉग लिखें।
ReplyDeleteअगर इन कानूनों का दुरुपयोग नहीं रोका गया तो इससे न केवस विवाह नामक संस्था खत्म हो जाएगी, बल्कि समाज स्त्री और पुरुष, दो हिस्सों में बंट जाएगा, इससे हमारी सामाजिक व्यवस्था ही चरमरा जाएगी”
ReplyDeleteयहाँ केवस की जगह केवल होना चाहिए।टाइपो गलती है।
अगर इन कानूनों का दुरुपयोग नहीं रोका गया तो इससे न केवस विवाह नामक संस्था खत्म हो जाएगी, बल्कि समाज स्त्री और पुरुष, दो हिस्सों में बंट जाएगा, इससे हमारी सामाजिक व्यवस्था ही चरमरा जाएगी”
ReplyDeleteयहाँ केवस की जगह केवल होना चाहिए।टाइपो गलती है।
अच्छा ब्लॉग है पर पश्चिम संस्कृति को दोष न देते हुए ब्लॉग लिखें।
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