ये कैसा अंधा कानून है......
यह एक ऐसी कहानी है, जिसमें दहेज उत्पीड़न के मामले में भारतीय दंड संहिता
(आईपीसी) की धारा 498ए की भयावह प्रताड़ना से भयय़ीत देश का
एक होनहार इंजीनियर 23 मार्च, 2008 को बंगलूरु में अपनी पत्नी की
इसलिए हत्या कर खुद पंखे से लटक आत्महत्या कर लेता
है कि वह अपने माता-पिता को जेल और अदालत की यातना से
दूर रखना चाहता था. अमित बुद्दिराज बंगलूरु स्थित दुनिया की
प्रतिष्ठित साफ्टवेयर
कंपनी इन्फोसिस में नौ साल से साफ्टवेयर इंजीनियर था. एक साल पहले ही उसकी एक बहुराष्ट्रीय बैंक में कार्यरत रिंकू सचदेवा से मुंबई में
शादी हुई थी. लेकिन
थोडे दिन बाद ही अमित बुद्दिराज को पता चलता है कि रिंकू का अपने एक सहकर्मी
से अफेयर है.
अमित जब इसका विरोध करने लगा तो रिंकू उसे 498ए के तहत जेल भेजने की धमकी देने लगी. धारा 498ए से अनजान
अमित ने इस कानून के बारे में जब
इंटरनेट पर सर्च करना शुरु किया तो उसके होश फाख्ता हो गए. उसे समझ में आ गया कि अगर वह 498ए की चपेट में आ गया तो न केवल उसका करियर
बर्बाद होगा बल्कि
बूंढे-मां बाप के साथ उसे सलाखों के पीछे जीवन काटना पड़ेगा. इसलिए जेल जाने और अदालत
के चक्कर लगाने की बजाए उसने पत्नी को मारकर आत्महत्या करना ही बेहतर समझा. अपने नौ पेज के सुसाइट नोट में अमित ने अपनी मनोस्थिति का विस्तार से जिक्र किया
है.
इसमें धारा 498ए की खामियों
को भी उजागर किया गया है.
पीड़ित पतियों के अधिकारों की
लड़ाई लड़ने वाले वकील और “मेन सेल” के संस्थापक
कामरेड आरपी चुंग कहते हैं, “मैं 498ए के आरोपी
बहुत सारे लोगों के मुकदमें भी लड़ता हूं. महीने में एक बुरी खबर मुझे जरूर मिलती है कि दहेज के झूठे मामले में फंसाए गए किसी व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली है. अगर दहेज उत्पीडन कानून का दुरुपयोग नहीं रोका गया तो देश में ऐसी आत्महत्याएं और बढ़ेंगी.”कभी महिलाओं
के अधिकारों के लिए आंदोलन चलाने वाले कामरेड चुग पत्नी द्वारा सताए जाने पर आज पत्नी पीड़ित पतियों के लिए आंदोलन चला रहे हैं. तमाम शहरों की दीवारों पर लिखे “पत्नी सताएं
तो हमें बताएं” उन्हीं का
नारा है. वे पीड़ित पतियों के लिए हेल्पलाइन भी चलाते हैं.
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के सन 2007 के आंकड़े बताते हैं कि इस साल 498ए के तहत 1,87,540 लोगों को गिरफ्तार किया गया जिसमें से केवल 13,247 लोग ही दोषी पाए गए. रिपोर्ट बताती है कि इस धारा के तहत गिरप्तार किए करीब 94 फीसदी लोग
निर्दोष पाए गए.
एनसीआरबी के ही आंकड़े
बताते हैं कि पिछले 10 सालों में शादीशुदा पुरुषों में आत्महत्या की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है. यह आंकड़े बहुत ही चौंकाने वाले हैं. हर 19 मिनट में एक व्यक्ति की हत्या होती है जबकि हर 10 मिनट में एक विवाहित व्यक्ति आत्महत्या कर
लेता है. 2005 से 2008 के बीच 2,23,167 विवाहित
पुरुषों ने आत्महत्या की. यह आंकड़ा इस दौरान आत्महत्या करने वाली विवाहित महिलाओं की
तुलना में करीब दुगुना
है. एक ऐसे कानून
की तस्वीर है, जिसके बारे में माना जाता है कि यह न केवल महिलाओं का सशक्तीकरण करेगा, बल्कि उन्हें
शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद
करने की ताकत भी देगा. लेकिन आज यही
कानून महिलाओं के एक बड़े वर्ग के लिए अभिशाप बन गया है तो पुरुषों के लिए
आत्महत्या का कारण..
राष्ट्रपति
प्रतिभा पाटिल ने भी 498ए के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए इसे देश के लिए
दुर्भाग्यपूर्ण बताया है. प्रतिभा पाटिल के मुताबिक, “इस तरह की
घटनाएं सामने आई हैं जिसमें महिलाओं की
भलाई के लिए बनाए गए कानूनी
प्रावधानों को तोड़ मरोड़ कर आपसी बदला लेने के लिए दुरुपयोग किया
जा रहा है. जो कानून
महिलाओं की सुरक्षा के लिए बना है अगर वह दुरुपयोग का उपकरण बन जाए तो यह
दुरभाग्यपूर्ण है.”
भारतीय सविधान मैं महिला और पुरुष को समान
अधिकार दिए गए है ! पुरुषो कि तुलना मैं महिलाओ को हर छेत्र मैं समान रूप से आरक्षण
भी दिया गया है , रोज़गार के भी समान अवसर दिए गये है ! एक
पुरुष जितना पढ़ा लिखा होता है औरत भी उतनी ही पढ़ी लिखी होती है! जब औरत बिना किसी
कारन के अपने ससुराल को छोड़कर पीहर चली जाती है और ससुराल वालो पर दहेज प्रताड़ना का
झूठा केस दर्ज करवा देती है और ससुराल आने के लिए मना करती है तो उसे भरण पोषण
(हर्ज़ा खर्चा) क्यूँ दिलाया जाता है! ये न्याय योजना के लिए सबसे निंदनीय बात
है ! पत्नी अपने पति के साथ पतित्व का धर्म निभा ही नहीं रही , और उसे घर
बेठे जिंदगी भर हर्ज़ा खर्चा देते रहो भले ही पति बेरोज़गार हो! औरत खुद इतनी काबिल है कि वह खुद कमा के
अपना खर्चा कर सकती है!
जेंडर ह्यूमन
राइट सोसायटी के संदीप भरतिया कहते
हैं, “बिना जांच और
सबूत के किसी को
गिरफ्तार करना प्राकृतिक न्याय के खिलाफ है. होना यह चाहिए कि पुलिस शिकायत आने पर पहले
जांच करे और दोषी पाए जाने
पर ही किसी को
गिरफ्तार करे. लेकिन इस कानून की आड़ में पुलिस पति के पूरे खानदान को
गिरफ्तार कर जेल में डाल
देती है. वैसे सुप्रीम कोर्ट ने 498ए के मामले में अपने एक फैसले में जांच के
बाद ही गिरफ्तार
करने का आदेश दिया है. हमने इसकी प्रति सभी राज्यों के पुलिस प्रमुखों को भेजी है. लेकिन ज्यादातर
राज्यों में अभी भी पुलिस
द्वारा इसे व्यवहार में नहीं लाया जा
रहा है.” खुद सरकारी आंकडें (एनसीआरबी रिपोर्ट-2007) बताते हैं कि इस धारा के तहत गिरफ्तार किए गए करीब 94 फीसदी लोग अदालत में निर्दोष साबित हो जाते हैं. एनसीआरबी के ही आंकड़ों के मुताबिक पिछले पांच सालों में (2004-2008) में 498ए के तहत की
गई महज शिकायत पर ही
बिना ट्रायल और जांच के 5,50,804 पुरुषों और 1,60,416 महिलाओं को
जेल भेज दिया गया.
सुप्रीमकोर्ट
ने तो इस कानून को “लीगल टैरीरिज्म” की संज्ञा तक
दे चुका है. पिछले साल
दहेज मामले में ही एक सुवनाई के दौरान जस्टिस अजीत पसायत और एचके सेमा ने 498ए को कानूनी आतंकवाद की संज्ञा देते हुए कहा था, “जांच एंजसियों
और अदालतों को पहरेदार की भूमिका
निभानी चाहिए न कि रक्त पिपासु की. निश्चित रूप से ही उनका प्रयास यह देखने के लिए होना चाहिए कि कोई भी निर्दोष व्यक्ति आधारहीन और दुरभावनापूर्ण आरोपों का
शिकार न बने.”
इस कानून के
दुरुपयोग का एक बड़ा उदाहरण पाकिस्तानी क्रिकेट स्टार शुएब मलिक हैं और आयशा सिद्दीकी का का मामला है. आयशा कभी शूएब के सामने नहीं आई. उसने अपनी जगह किसी सुंदर लड़की की फोटो भेज कर शूएब को गुमराह किया और फोन पर निकाह कर लिया. जब भी शूएब
मिलने की बात करता
आयशा कोई न कोई बहाना बना कर उससे मिलने से इनकार कर देती. लेकिन जैसे ही शूएब ने टेनिस स्टार सानिया से शादी की बात की आयशा सामने आ गई. पहले तो शूएब ने आयशा से शादी करने और तलाक देने से इनकार किया. लेकिन जैसे ही
आयशा ने शूएब पर दहेज
कानून के तहत 498ए में मामला दर्ज कराया तो इस पाक क्रिकेट स्टार का रुख नरम पड़ गया. शूएब
के वकीलों ने उसे
498ए के
प्रावधानों को समझाते हुए उससे इस कानून
से न उलझने की सलाह दी. कल तक
आयशा से शादी को इनकार करने वाले
शुएब उसकी सारी शर्ते मानते हुए तलाक के लिए तैयार हो गए. खबर हैं कि
शुएब ने धारा 498ए से बचने के लिए आयशा को 15 करोड़ रूपये
बतौर हर्जाना भी
दिया. सेव इंडियन फेमिली
फाउंडेशन के बंग्लूरु के प्रवक्ता विराग कहते है, “आठ साल तक एक
लड़की चुप रहती है और
फिर एक दिन 498ए के तहत माममा दर्ज कर वह शूएब मलिक से 15 करोड़ रूपये
हर्जाना वसूल लेती है.
जब मामला एक बार दर्ज हो गया तो यह समझौता थाने में नहीं होना चाहिए. यह फैमिली कोर्ट को देखना है कि क्या करना है.
लेकिन थाने में समझौता और
हर्जाना दिलवाना, यह सत्ता समर्थित जबरन वसूली का एक नायाब उदाहरण है.” इसका मतलब यह भी नहीं है कि देश में महिलाओं का दहेज के लिए उत्पीडन नहीं हो रहा है. असलियत यह है कि जिनका वाकई उत्पीडन हो रहा है उनमें से ज्यादातर
महिलाएं आज भी थाने और
अदालत की पहुंच से बहुत दूर हैं.
दरअसल इस कानून के दुरुपयोग के लिए महिला से ज्यादा पुलिस और वकील ही दोषी हैं. पीड़ित सांसों और ननदों के संगठन मदर्स एंड सिस्टर्स इनीसेटिव की अध्यक्ष डा. अनुपमा कहती हैं, “धारा 498ए लड़की के
साथ साथ पुलिस, वकील और जजों
की भी कमाई का एक बड़ा
जरिया है. पुलिस और वकील तो लड़कियों
को 498ए में मामला
दर्ज कराने के लिए उकसाते हैं. एक बार मामला दर्ज हो गया तो पुलिस पति पक्ष से
जम कर पैसा वसूलती
है. हमने हाल ही में दिल्ली की
अदालतों में एक सर्वे किया तो पाया
कि हर रोज जमानत की सुनवाई के लिए जितने मामले आते हैं उनमें से एक तिहाई
मामले 498ए के जमानत के होते हैं.” नेशनल क्राइम
रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के
आंकड़ों के मुताबिक हर साल
महिलाओं के खिलाफ अपराध के जितने मामले दर्ज होते हैं उनमें से 40 फीसदी से
ज्यादा मामले 498ए के ही होते
हैं. जेल में 498ए के तहत केवल
पुरुष ही नहीं, बड़े पैमाने
पर महिलाएं (सास- ननद) भी बंद
हैं. इनकी पीड़ा यह
है कि जब ये निर्दोष साबित होकर घर
वापस लौटती हैं तो भी समाज
इन्हें बुरा ही समझता है.
आल इंडिया मदर-इन-ला प्रोटेक्शन फोरम की अध्यक्ष नीना धूलिया कहती हैं, “ दहेज के झूठे मामले में फंसा पूरा परिवार अवसाद का शिकार हो जाता है. समाज की नजरों में उनकी प्रतिष्ठा चली जाती है. ऐसे में इन परिवारों की बेटे- बेटियों की शादी नहीं हो पाती. कई मामलों में तो ऐसा भी देखा गया है कि दहेज के मामले में फर्जी तरीके से फंसाए पति के भाई और दोस्त इस हादसे से इतना दहल जाते हैं कि वे शादी से डरने लगते हैं और आजीवन कुंवारे रहने की कोशिश करते हैं. भविष्य में इससे पूरा सामाजिक ढांचा ही ढह जाएगा.”
दहेज कानूनों के दुरुपयोग के शिकार पतियों, सासो और ननदों ने एक जुट होकर अपना संगठन भी बना लिया है. इस समय देश में इनके पचास से ज्यादा संगठन हैं. सेव इंडियन फेमिली फाउंडेशन इनमें सबसे बड़ा और विशाल नेटवर्क वाला संगठन है. पीड़ित पति तो अब 19 नवंबर को “पति दिवस” के रूप में मनाने लगे हैं. वे हर शनिवार को दिल्ली सहित दूसरे महानगरों में एक जगह पर इकठ्ठा होते हैं और एक दूसरे का दुख दर्द बांटते हैं. पतियों के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों का मानना है कि भारत में महिलाओं के हक में जो भी कानून हैं या फिर बनाए जा रहे हैं वह इतने “अव्यवहारिक और बायस्ड” हैं कि उनका दुरुपयोग होना तय है.
आल इंडिया मदर-इन-ला प्रोटेक्शन फोरम की अध्यक्ष नीना धूलिया कहती हैं, “ दहेज के झूठे मामले में फंसा पूरा परिवार अवसाद का शिकार हो जाता है. समाज की नजरों में उनकी प्रतिष्ठा चली जाती है. ऐसे में इन परिवारों की बेटे- बेटियों की शादी नहीं हो पाती. कई मामलों में तो ऐसा भी देखा गया है कि दहेज के मामले में फर्जी तरीके से फंसाए पति के भाई और दोस्त इस हादसे से इतना दहल जाते हैं कि वे शादी से डरने लगते हैं और आजीवन कुंवारे रहने की कोशिश करते हैं. भविष्य में इससे पूरा सामाजिक ढांचा ही ढह जाएगा.”
दहेज कानूनों के दुरुपयोग के शिकार पतियों, सासो और ननदों ने एक जुट होकर अपना संगठन भी बना लिया है. इस समय देश में इनके पचास से ज्यादा संगठन हैं. सेव इंडियन फेमिली फाउंडेशन इनमें सबसे बड़ा और विशाल नेटवर्क वाला संगठन है. पीड़ित पति तो अब 19 नवंबर को “पति दिवस” के रूप में मनाने लगे हैं. वे हर शनिवार को दिल्ली सहित दूसरे महानगरों में एक जगह पर इकठ्ठा होते हैं और एक दूसरे का दुख दर्द बांटते हैं. पतियों के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों का मानना है कि भारत में महिलाओं के हक में जो भी कानून हैं या फिर बनाए जा रहे हैं वह इतने “अव्यवहारिक और बायस्ड” हैं कि उनका दुरुपयोग होना तय है.
जेंडर ह्यूमन राइट सोसायटी के अध्यक्ष संदीप भरतिया कहते हैं, “इन कानूनों के
निर्माण में महिला संगठन और फेमिनिस्ट लॉबी की ही प्रमुख भूमिका होती है, लिहाजा ये
कानून पूरी तरह से “जेंडर बायस्ड” होते हैं.” सेव इंडियन फेमिली फाउंडेशन के संस्थापक सदस्य
गुरुदर्शन सिंह कहते हैं, “अगर 498ए मे केवल
इतना ही प्रावधान जोड़ दिया जाए
कि यदि अदालत में साबित हो जाता है कि लड़की ने पति पर गलत आरोप लगाया था, तो लड़की को भी सजा मिलनी चाहिए, इस धारा का दुरुपयोग काफी हद तक रुक जाएगा.”.
पिछले पांच साल में इस कानून के दुरुपयोग के कारण 2 लाख 23 हजार 167 पति आत्महत्या कर चुके हैं. इस धारा के तहत 2006 में 1,37,180 लोग गिरफ्तार हुए जिसमें 93 फिसदी निर्दोष पाये गये.2007 में भी इस धारा के तहत 1,87,540 लोग गिरफ्तार किये गये जिसमें 94 फीसदी लोग निर्दोष पाये गये.
आखिर इसके दुरुपयोग की वजह क्या है, मदर्स एंड सिस्टर्स इनीसिएटिव की प्रवक्ता किरण कुकरेजा कहती है, “बहू अब जिम्मेदारियों की बजाए ससुराल में ढ़ेर सारे कनूनी अधिकार ले कर आती है. वह पति और उसके घर वालों से सुख सुविधा की सब चीजें चाहती है लेकिन जिम्मेदारी नहीं. ” कुकरेजा आगे कहती हैं, “घर टूटने की एक बड़ी वजह खुद महिला आयोग और नारीवादी संगठन ही है. उनके लिए केवल बहू ही महिला है सास और ननद नहीं. वे तो हमारी बात सुनने को भी तैयार नहीं.” तो पति परिवार कल्याण समिति के सचिव ब्रिजेश अवस्थी 498ए के दुरुपयोग के लिए यह तर्क देते हैं, “आज लड़कियों की यह मानसिकता बन गई है कि वह ससुराल में ऐसों आऱाम से रहेगी. वह ससुराल में मुक्त जीवन जीना चाहती है. जब उस पर प्रतिबंध लगता है तो यह स्थित पैदा होती है.” इस कानून का असर केवल पुरुष और महिलाओं पर ही नहीं पड़ रहा है, बच्चे भी इसके शिकार हो रहे हैं. बच्चे के संपूर्ण विकास के लिए उसका माता-पिता के साथ रहना अनिवार्य है. लेकिन जिस तरह से भारत में तेजी से दहेज के मामले (पिछले पांच साल में 3,36,842) दर्ज हो रहे हैं और पति-पत्नी अलग रह रहे हैं उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आगे चल कर एक पीढ़ी ऐसी तैयार होगी, जिसे मां-बाप का भरपूर प्यार नहीं मिला होगा. अमेरिका में ऐसे बच्चों पर हुए अध्ययन चौंकाने वाले हैं. जो बच्चे संयुक्तरूप से अपने मां-बाप के साथ रहते हैं और जो बच्चे परिवार टूटने से पिता से अलग रहते हैं, उनमें पहले बच्चों के मुकाबले घर से भागने की 32 गुनी, जेल जाने की 20 गुनी, बिहैवियरल डिसआर्डर की 20 गुनी, बलात्कार करने की 14 गुनी, स्कूल छोड़ने की नौ गुनी और आत्महत्या करने की पांच गुनी ज्यादा संभावना होती है.
पिछले पांच साल में इस कानून के दुरुपयोग के कारण 2 लाख 23 हजार 167 पति आत्महत्या कर चुके हैं. इस धारा के तहत 2006 में 1,37,180 लोग गिरफ्तार हुए जिसमें 93 फिसदी निर्दोष पाये गये.2007 में भी इस धारा के तहत 1,87,540 लोग गिरफ्तार किये गये जिसमें 94 फीसदी लोग निर्दोष पाये गये.
आखिर इसके दुरुपयोग की वजह क्या है, मदर्स एंड सिस्टर्स इनीसिएटिव की प्रवक्ता किरण कुकरेजा कहती है, “बहू अब जिम्मेदारियों की बजाए ससुराल में ढ़ेर सारे कनूनी अधिकार ले कर आती है. वह पति और उसके घर वालों से सुख सुविधा की सब चीजें चाहती है लेकिन जिम्मेदारी नहीं. ” कुकरेजा आगे कहती हैं, “घर टूटने की एक बड़ी वजह खुद महिला आयोग और नारीवादी संगठन ही है. उनके लिए केवल बहू ही महिला है सास और ननद नहीं. वे तो हमारी बात सुनने को भी तैयार नहीं.” तो पति परिवार कल्याण समिति के सचिव ब्रिजेश अवस्थी 498ए के दुरुपयोग के लिए यह तर्क देते हैं, “आज लड़कियों की यह मानसिकता बन गई है कि वह ससुराल में ऐसों आऱाम से रहेगी. वह ससुराल में मुक्त जीवन जीना चाहती है. जब उस पर प्रतिबंध लगता है तो यह स्थित पैदा होती है.” इस कानून का असर केवल पुरुष और महिलाओं पर ही नहीं पड़ रहा है, बच्चे भी इसके शिकार हो रहे हैं. बच्चे के संपूर्ण विकास के लिए उसका माता-पिता के साथ रहना अनिवार्य है. लेकिन जिस तरह से भारत में तेजी से दहेज के मामले (पिछले पांच साल में 3,36,842) दर्ज हो रहे हैं और पति-पत्नी अलग रह रहे हैं उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आगे चल कर एक पीढ़ी ऐसी तैयार होगी, जिसे मां-बाप का भरपूर प्यार नहीं मिला होगा. अमेरिका में ऐसे बच्चों पर हुए अध्ययन चौंकाने वाले हैं. जो बच्चे संयुक्तरूप से अपने मां-बाप के साथ रहते हैं और जो बच्चे परिवार टूटने से पिता से अलग रहते हैं, उनमें पहले बच्चों के मुकाबले घर से भागने की 32 गुनी, जेल जाने की 20 गुनी, बिहैवियरल डिसआर्डर की 20 गुनी, बलात्कार करने की 14 गुनी, स्कूल छोड़ने की नौ गुनी और आत्महत्या करने की पांच गुनी ज्यादा संभावना होती है.
फिलहालतो देश में ऐसे बच्चों की तादाद लाखों में होगी. आने वाले समय में जिस तरह से पतियों
के खिलाफ और
कानून बन रहे हैं, उससे ऐसे बच्चों की तादाद घटने नहीं, बल्कि और बढ़ने ही वाली है. ऐसे में भारत का एक भयावह भविष्य नजर आ रहा है. राष्ट्रीय महिला आयोग महिलाओं हक में करीब दर्जनभर कानून और बनाने जा रही है. इनका मसौदा तैयार हो चुका है और
इसे जल्दी ही संसद
में पेश किया जाएगा. जिस तरह से दहेज उत्पीड़न कानून और घरेलू हिंसा
कानून के बड़े
पैमाने पर दुरुपयोग के मामले सामने आ रहे हैं, उसके मद्देनजर सरकार को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि नही इन
कानूनों का और न ही प्रस्तावित नए काननों का किसी भी हालत में दुरपयोग होने पाए. वरना आने वाले समय में इसके घातक नतीजे
सामने आएंगे. नीना
धूलिया कहती हैं, “अगर इन कानूनों का दुरुपयोग नहीं रोका गया तो इससे न केवल विवाह नामक संस्था खत्म हो जाएगी, बल्कि समाज स्त्री और पुरुष, दो हिस्सों
में बंट जाएगा. इससे हमारी सामाजिक व्यवस्था ही चरमरा जाएगी.”
तो आओ हम सब एक जुट होकर शपथ ले और इस कानूनी आतंकवाद को जड़ से मिटाने में सहयोग करें और अपने शहर की साप्ताहिक मीटिंग में जाकर अपना योगदान दें........
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क्या आप और आपके रिश्तेदार झूंठे दहेज़ प्रताड़ना कानून, गुजारा भत्ता, बलात्कार व घरेलु हिंसा के मुकदमो व धमकियो से पीड़ित हैं?
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जयपुर सेव इंडियन फैमिली साप्ताहिक मीटिंग-
जयपुर सेव इंडियन फैमिली साप्ताहिक मीटिंग-
मीटिंग स्थल- सेन्ट्रल पार्क, तिरंगे झंडे के नीचे, गेट नंबर 2,टोंक रोड, जयपुर
दिन- प्रतेक रविवार
समय- शाम 4 बजे से. 7 बजे तक
संपर्क सूत्र-
दिन- प्रतेक रविवार
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