Tuesday, September 27, 2016

पत्नी या उस के माता-पिता से फर्जी मुकदमे करने की धमकी मिलने पर क्या करें?

पत्नी या उस के माता-पिता से फर्जी मुकदमे करने की धमकी मिलने पर क्या करें?
समस्या-
मेरा विवाह 2008 में हिन्दू रीति रिवाज से हुआ था।  दो वर्ष तक हमारा वैवाहिक जीवन बहुत अच्छी तरह से चल रहा था।  लेकिन उस के बाद मेरी सास और ससुर ने मेरी पत्नी को मेरे परिवार के विरुद्ध भड़काना आरंभ कर दिया।  मेरे परिवार में माँ और एक छोटा भाई है।  मेरी पत्नी लगभग दो वर्ष से अपने मायके में है।  मैं ने उसे लाने की कई बार कोशिश की। पर उस की एक ही जिद रही है कि जब तक मैं अपने परिवार से अलग नहीं हो जाता तब तक वह नहीं आएगी।  मैं ने उसे मना कर दिया कि मैं अपनी माँ और भाई को नहीं छोड़ सकता।  उस के बाद मेरी पत्नी ने मुझ पर घरेलू हिंसा का मुकदमा कर दिया।  जिस का निर्णय यह हुआ कि प्रार्थना पत्र आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया गया।  मुझ पर जो आरोप पत्नी ने लगाए उन्हें वह साबित नहीं कर सकी।  न्यायालय ने मुझे आवेदन प्रस्तुत करने की तिथि से रुपए 1000/- प्रतिमाह गुजारा भत्ता अपनी पत्नी को देने का आदेश दिया।  उस के बाद पत्नी ने धारा 125 दं.प्र.संहिता के अंतर्गत आवेदन प्रस्तुत कर दिया है, जिस में उस ने यह मिथ्या तथ्य अंकित किया है कि मेरी आमदनी एक लाख रुपया बताई है।  पिछले एक साल से पत्नी पेशी पर नहीं आ रही है, जानबूझ कर केस लटका रखा है।  इस दौरान भी मैं ने उसे खूब समझाया पर वह मानने को तैयार नहीं है।  अब मेरे ससुर ने मुझे धमकी दी है कि मैं ने अपने परिवार को नहीं त्यागा तो मेरे ऊपर 498 ए भा. दंड संहिता सहित चार मुकदमे और लगवा देंगे।  मेरे कोई संतान भी नहीं है।  मैं बहुत परेशान हूँ।  मुझे क्या करना चाहिए?
-जयप्रकाश नारायण, शिमला, हिमाचल प्रदेश
समाधान
यह आजकल एक आम समस्या हो चली है।  अधिकांश पतियों की शिकायत यही होती है कि पत्नी को उस के माता-पिता ने भड़काया और वह पति को छोड़ कर चली गई।  उस का कहना है कि परिवार छोड़ कर अलग रहो तो आएगी। मना करने पर वह मुकदमा कर देती है।  लेकिन यह जानने की कोशिश कोई नहीं करता कि ऐसा क्यों हो रहा है? समस्या के आरंभ में ही यह जानने की कोशिश की जाए और काउंसलिंग का सहारा लिया जाए तो ऐसी समस्याएँ उसी स्तर पर हल की जा सकती हैं।  लेकिन आरंभ में पति-पत्नी दोनों ही अपनी जिद पर अड़े रहते हैं, मुकदमे होने पर समस्या गंभीर रूप धारण कर लेती है।  दोनों और इतना दुराग्रह हो जाता है कि समस्या का कोई हल नहीं निकल पाता है।
तीसरा खंबा को पति की ओर से इस तरह की शिकायत मिलती है तो उन में अधिकांश में पत्नी और उस के मायके वालों का ही दोष बताया जाता है।  पति कभी भी अपनी या अपने परिवार वालों की गलती नहीं बताता।  जब कि ऐसा नहीं होता।  ये समस्याएँ आरंभ में मामूली होती हैं जिन्हें आपसी समझ से हल किया जा सकता है।  ये दोनों ओर से होने वाली गलतियों से गंभीर होती चली जाती हैं और एक स्तर पर आ कर ये असाध्य हो जाती हैं।  आरंभ में पत्नी अपनी शिकायत पति से ही करती है।  ये शिकायतें अक्सर पति के परिवार के सदस्यों के व्यवहार से संबंधित होती हैं।  पहले पहल तो पति इन शिकायतों को सुनने से ही इन्कार कर देता है और पत्नी को ही गलत ठहराता है।  दूसरे स्तर पर जब वह थोड़ा बहुत यह मानने लगता है कि गलती उस के परिवार के किसी सदस्य की है तो वह अपने परिवार के किसी सदस्य को समझाने के स्थान पर अपनी पत्नी से ही सहने की अपेक्षा करता है।  यदि आरंभ में ही पत्नी की शिकायत या समस्या को गंभीरता से लिया जाए और दोनों मिल कर उस का हल निकालने की ओर आगे बढ़ें तो ये समस्याएँ गंभीर होने के स्थान पर हल होने लगती हैं।
हमें लगता है कि यदि इस स्तर पर भी काउंसलिंग के माध्यम से प्रयत्न किया जाए आप की समस्या भी हल हो सकती है।  काउंसलिंग जिन न्यायालयों में मुकदमे चल रहे हैं उन से आग्रह कर के उन के माध्यम से भी आरंभ की जा सकती है।  काउंसलर के सामने दोनों अपनी समस्याएँ रखें और उन्हें मार्ग सुझाने के लिए कहें।  काउंसलर दोनों को अपने अपने परिजनों के प्रभाव से मुक्त कर के दोनों की गृहस्थी को बसाने का प्रयत्न कर सकते हैं।  खैर¡
किसी भी कार्य को करने के लिए किसी व्यक्ति को यह धमकी देना कि अन्यथा वह उसे फर्जी मुकदमों में फँसा देगा, भारतीय दंड संहिता की धारा 503 के अंतर्गत परिभाषित अपराधिक अभित्रास (Criminal Intimidation) का अपराध है। धारा 506 के अंतर्गत ऐसे अपराध के लिए दो वर्ष के कारावास का या जुर्माने का या दोनों से दंडित किया जा सकता है।  आप को पत्नी और उस के माता-पिता ने यह धमकी दी है कि वे आप के विरुद्ध फर्जी मुकदमे लगा देंगे।  यदि आप यह सब न्यायालय में साक्ष्य से साबित कर सकते हैं कि उन्हों ने ऐसी धमकी दी है तो आप को तुरंत धारा 506 भा.दं.संहिता के अंतर्गत मजिस्ट्रेट के न्यायालय के समक्ष परिवाद प्रस्तुत करना चाहिए।  जिस से बाद में पत्नी और उस के माता-पिता द्वारा ऐसा कोई भी मुकदमा कर दिए जाने पर आप प्रतिरक्षा कर सकें।  ऐसा परिवाद प्रस्तुत कर देने के उपरान्त आप को अपने वकील से एक नोटिस अपनी पत्नी को दिलाना चाहिए जिस में यह बताना चाहिए कि उस का स्त्री-धन आप के पास सुरक्षित है और कभी भी वह स्वयं या अपने विधिपूर्वक अधिकृत प्रतिनिधि को भेज कर प्राप्त कर सकती हैं।  इस से आप धारा 406 भारतीय दंड संहिता के अपराधिक न्यास भंग के अपराध में प्रतिरक्षा कर सकेंगे। इस के साथ ही आप हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 9 के अंतर्गत पत्नी के विरुद्ध दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना के लिए भी आवेदन प्रस्तुत करना चाहिए।