Tuesday, April 25, 2017

प्रार्थना पत्र का प्रारूप अंतर्गत पुत्र की अंतरिम अस्थाई अभिरक्षा धारा 12 भारतीय संरक्षक एवं प्रतिपाल्य अधिनियम, 1890 - सपठित आदेश 39 के नियम 1 और 2 सिविल प्रक्रिया सहिंता 1908



न्यायालय पारिवारिक न्यायाधीश क्र.स.- 2
             जयपुर महानगर, जयपुर

प्रकरण संख्या:        / 2015

राजेश कुमार वर्मा पुत्र श्री अशोक वर्मा, आयु- 30 वर्ष, जाति- रैगर, निवासी- 31 मायापुरी कॉलोनी, मनोहरपुरा, जगतपुरा, जिला- जयपुर (राज.)
                                                                                
                 - प्रार्थी
बनाम
श्रीमती अनीता कुमारी पत्नी राजेश कुमार वर्मा पुत्री श्री कमल किशोर, आयु 29 वर्ष, जाति- रैगर, निवासी- 15A, दुर्गानगर विस्तार, कालवाड रोड, हरनाथपुरा, जिला- जयपुर (राज.)
                                                                       
                    -अप्रार्थिया

प्रार्थना पत्र अंतर्गत अंतरिम अस्थाई अभिरक्षा धारा 12  भारतीय संरक्षक एवं प्रतिपाल्य अधिनियम, 1890 सपठित आदेश 39 नियम 1 व 2 सिविल प्रक्रिया सहिंता 1908

मान्यवर जी,
    प्रार्थी की ओर से अंतरिम अनुतोष के तहत अस्थाई अभिरक्षा चाहने बाबत प्रार्थना पत्र श्रीमान न्यायालय पारिवारिक न्यायाधीश महोदय के समक्ष निम्नलिखित प्रकार से पेश हैं-

1.      यह है कि प्रार्थी द्वारा दिनांक 27-04-2015 को श्रीमान न्यायालय पारिवारिक न्यायाधीश क्र. स. 2 जयपुर महानगर, जयपुर के समक्ष स्वयं के 4 वर्ष 7 माह के अवयस्क पुत्र अभिनव की अभिरक्षा चाहने बाबत याचना की गई| इस क्रम में प्रार्थी पूर्व में कई बार अपने ससुराल गया मगर उसे अप्रार्थिया और उसके माता पिता ने बच्चे से मिलने नहीं दिया| जिससे प्रार्थी पुत्र वियोग के चलते मानसिक अवसाद में रह रहा है और शारीरिक रूप से कमजोर हो गया है|
2.      यह है की अप्रार्थिया ने बिना किसी युक्ति युक्त कारण के प्रार्थी के परित्याग कर रक्खा है और हठधर्मिता के चलते सबक सिखाने के मकसद से महानगर सिविल न्यायालय क्र.स. 20 जयपुर महानगर में भारतीय दंड सहिंता की धारा 498अ और 406 तथा माननीय अतिरिक्त सिविल न्यायाधीश एवं मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट क्र.स. 18, जयपुर महानगर, जयपुर में घरेलु हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 की धारा 12 के तहत प्रकरण दर्ज करवा रखा है|
3.      यह है की अप्रार्थिया माननीय अतिरिक्त सिविल न्यायाधीश एवं मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट स. 18, जयपुर महानगर, जयपुर के मार्फत प्रार्थी से पिछले तीन साल से भी अधिक समय से भारतीय दंड प्रक्रिया की धारा 125 के तहत स्वयं के लिए 2000 रुपये और पुत्र के भरण पोषण हेतु 1000 रुपये प्रति माह ले रही है|
4.      यह है कि माननीय अतिरिक्त सिविल न्यायाधीश एवं मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट स. 18, जयपुर महानगर, जयपुर के द्वारा दिनांक 20-10-2016 को घरेलु हिंसा से महिलाओ का संरक्षण अधिनियम की धारा 21 के तहत पुत्र अभिनव से मिलने के अधिकार के लिए आदेश पारित करते हुये प्रार्थी पिता का प्रार्थना पत्र आंशिक रूप से स्वीकार किया गया और प्रतेक महीने के अंतिम शनिवार को समय 3.15 PM से 4.15 PM तक न्यायालय के कमरे में केवल प्रार्थी पिता व उसकी माता गुलाब देवी को ही बच्चे से मिलने के लिए आदेश दिया|  प्रार्थी के अन्य पारिवारिक सदश्यों को पुत्र अभिनव से मिलने की अनुमति नहीं दी गई|
5.      यह है कि उक्त न्यायिक आदेश प्रार्थी पिता और उसके परिवार के लिये ऊँट के मुंह में जीरे के समान है| इस आदेश के अनुसार एक महीने में अप्रार्थिया पुत्र अभिनव से पूरे एक घंटे भी नहीं मिलने देती है और ना ही बात करने देती है और पुत्र अभिनव को पिता विरोधी शब्द (पापा तो गंदे है) उच्चारण करने के लिए बाध्य करती है जिससे अधीनस्थ न्यायालय के न्यायाधीश महोदय को बार बार अपनी कुर्सी छोड़कर पास के कमरे में आना पड़ता था|
6.      यह है कि अप्रार्थिया ने अभी तक पुत्र अभिनव के स्कूल और उसके शिक्षा, चिकित्सा आदि के स्तर के बारे में प्रार्थी को अवगत नहीं कराया|
7.      यह है कि अभी तक किसी भी न्यायालय द्वारा पुत्र अभिनव को कानूनी रूप से संरक्षण घोषित नहीं किया गया है| पुत्र अभिनव का जन्म दोनों के वैवाहिक संबंधो के उपरांत हुआ है और अभी तक संरक्षक और प्रतिपाल्य अधिनियम, 1890 की धारा 12 के तहत प्रार्थी पिता को भी विधिवक प्रावधानों के तहत बच्चे के शारीरिक व मानसिक विकास के लिये अंतरिम अस्थाई अभिरक्षा के अधिकार मिले है|

8.      यह है कि प्रार्थी द्वारा अपने प्राक्रतिक पुत्र अभिनव की अस्थाई अभिरक्षा से पुत्र अभिनव के चरित्र और व्यक्तित्व पर कोई कुप्रभाव नहीं पड़ेगा, बल्कि पिता और पुत्र में आपसी स्नेह व प्यार बढेगा| इससे पहले प्रार्थी अधीनस्थ न्यायालय के आदेश दिनांक 20-10-2016 के बाद अपनी माता जी श्रीमती गुलाब देवी के साथ पुत्र अभिनव से चार बार मिल चुका है, जिसमे पुत्र अभिनव अपने पिता और दादी की गोद में बड़े स्नेह व प्यार के साथ बैठा है और प्यार भरी बातें की है|
9.      यह है कि अप्रार्थिया पिछली कई तारीख पेशियों पर जब भी पुत्र अभिनव को अधीनस्थ न्यायालय में लेकर आयी तो पुत्र अभिनव को पिता के विरुद्ध अवांछनीय बातें बोलने के लिए बाध्य करती थी जिससे पिता और पुत्र में प्यार ना बढ़ सके और पुत्र अभिनव पिता की गोद में ना आ सके| इस सम्बन्ध में प्रार्थी के द्वारा अधीनस्थ न्यायालय को शिकायत करने पर न्यायालय ने अप्रार्थिया अनीता को मौखिक रूप से पाबंध भी किया था|
10. यह है कि अप्रार्थिया अनीता अनुचित अनुतोष प्राप्त करने के लिये न्यायपालिका को ही नहीं अपितु राजस्थान लोक सेवा आयोग को भी गुमराह कर रही है| हाल ही मैं राजस्थान लोक सेवा आयोग के अधीनस्थ आर.ऐ.एस. 2016 के परीक्षा फॉर्म में अप्रार्थिया समस्त तथ्यों को जानते हुये अपने आपको तलाकशुदा कथन किया, जबकि अभी तक किसी भी पारिवारिक न्यायालय द्वारा विवाह विच्छेद की डिक्री पारित नहीं की गई और ना ही अप्रार्थिया का तलाक हुआ| जो इस बात को प्रमाणित करता है कि अप्रार्थिया तलाकशुदा कोटे का आरक्षण पाने के लिये दहेज़ और घरेलू हिंसा कानून का दुरुपियोग कर रही है| (राजस्थान लोक सेवा आयोग के अधीनस्थ आर.ऐ.एस. 2016 के परीक्षा फॉर्म की प्रिंटेड प्रत्तियाँ संलग्न)
11. यह है कि इस प्रार्थना पत्र से इस प्रकरण की मूल याचिका पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा और प्रकरण के किसी भी स्तर पर प्रार्थी न्यायालय में अंतरिम अनुतोष के लिए आवेदन कर सकता है चाहे प्रकरण किसी भी स्टेज में चल रहा हो |




अतः संरक्षक और प्रतिपाल्य अधिनियम, 1890 की धारा 12 में पुत्र की अस्थाई अभिरक्षा के प्रावधानों के तहत  पिता और उसके परिवार को निम्नलिखित अनुतोष दिलाने की कृपा करें:-
   I.     अप्रार्थिया प्रतेक सप्ताह में 2 दिन (48 घंटे) प्रार्थी और उसके परिवार से बच्चे को मिलवायेगी और सुपुर्द करेगी, जिससे प्रार्थी महत्वपूर्ण समय पुत्र अभिनव के साथ बिता सके और उसे शौपिंग और पिकनिक आदि करा सके|
  II.     प्रार्थी के घर और परिवार में होने वाले किसी भी कार्यक्रम में अप्रार्थिया पुत्र अभिनव को एक सप्ताह के लिये प्रार्थी और उसके परिवार को सुपुर्द करेगी|
 III.     अप्रार्थिया को पाबंध किया जाये कि वह भविष्य में बच्चे के मन में प्रार्थी पिता और उसके परिवार के प्रति मन में जहर और द्वेश की भावना पैदा नहीं करेगी जिससे पुत्र अभिनव का ब्रेन बाश ना हो सके|
 IV.     अप्रार्थिया भविष्य में प्राकृतिक पिता के होते हुये पुत्र अभिनव को किसी दुसरे पुरुष को पिता (पापा) कहने के लिये बाध्य नहीं करेगी|
  V.     प्रार्थी यथा संभव अपने पुत्र के अच्छे भविष्य के लिये उसके स्कूल में जा सकेगा और उसके अध्यापको से मीटिंग कर सकेगा|
 VI.     पुत्र की स्कूल में होने वाले सभी सांस्कृतिक कार्यक्रमों और शिक्षक अभिभावक संगोष्ठी में प्रार्थी पिता पुत्र के साथ उपस्थित हो सकेगा|
VII.     बच्चे के बीमार होने पर अप्रार्थिया प्रार्थी को सूचित कर करेगी और मिलवायेगी|
VIII.     प्रार्थी यथा संभव प्रतेक दिन पुत्र अभिनव से फोन पर बातें कर सकेगा, इसके लिये अप्रार्थिया प्रार्थी पिता को अपना फ़ोन नंबर देगी और बात करवायेगी|
 IX.     अप्रार्थिया को पाबंध किया जावे कि कभी भी पुत्र अभिनव का नाम और सर नाम नहीं बदलेगी और समस्त दस्तावेजो में अभिनव का नाम और सर नाम अभिनव वर्मा (ABHINAV VERMA) ही रखेगी|
  X.     अप्रार्थिया को पाबंध किया जावे कि समस्त दस्तावेजो में पुत्र अभिनव के प्राकृतिक पिता का नाम प्रार्थी का पूरा नाम राजेश कुमार वर्मा (RAJESH KUMAR VERMA) ही रखेगी|
 XI.     यदि अप्रार्थिया स्वयं का गृह आवास और बच्चे का स्कूल बदलती है तो इसका प्रार्थी को 30 दिन के भीतर सूचना देगी और नये गृह आवास और स्कूल का पता व टेलीफ़ोन नंबर बतायेगी|

   यह है कि इस अंतरिम अस्थाई अभिरक्षा के प्रार्थना पत्र के मार्फत वास्तविक तथ्यों का आपके के समक्ष आना जरुरी है जिससे इस प्रकरण का समुचित न्याय निस्तारण हो सके और पुत्र वियोग से पीड़ित प्रार्थी पिता और उसके परिवार को पुत्र अभिनव के लाड प्यार करने व उसके साथ घूमने फिरने का अधिकार मिल सके|
अतः प्रार्थी की ओर से अंतरिम अनुतोष हेतु प्रार्थना पत्र पेश कर माननीय पारिवारिक न्यायालय से निवेदन है कि अप्रार्थीया प्रार्थी को पुत्र वियोग में मानसिक रूप से परेशांन न करे और पुत्र अभिनव को समय समय पर प्रार्थी से मिलवाये और निम्नलिखित अनुतोष देकर पुत्र अभिनव से मिलने व अंतरिम अस्थाई अभिरक्षा का अधिकार देने की कृपा करे जिससे प्रार्थी अपने पुत्र के साथ घूम फिर सके और उसे शौपिंग व पिकनिक आदि करा सके|

धन्यवाद,

दिंनाक:

स्थान: जयपुर



पीड़ित प्रार्थी पिता

(राजेश कुमार वर्मा)


Tuesday, September 27, 2016

पत्नी या उस के माता-पिता से फर्जी मुकदमे करने की धमकी मिलने पर क्या करें?

पत्नी या उस के माता-पिता से फर्जी मुकदमे करने की धमकी मिलने पर क्या करें?
समस्या-
मेरा विवाह 2008 में हिन्दू रीति रिवाज से हुआ था।  दो वर्ष तक हमारा वैवाहिक जीवन बहुत अच्छी तरह से चल रहा था।  लेकिन उस के बाद मेरी सास और ससुर ने मेरी पत्नी को मेरे परिवार के विरुद्ध भड़काना आरंभ कर दिया।  मेरे परिवार में माँ और एक छोटा भाई है।  मेरी पत्नी लगभग दो वर्ष से अपने मायके में है।  मैं ने उसे लाने की कई बार कोशिश की। पर उस की एक ही जिद रही है कि जब तक मैं अपने परिवार से अलग नहीं हो जाता तब तक वह नहीं आएगी।  मैं ने उसे मना कर दिया कि मैं अपनी माँ और भाई को नहीं छोड़ सकता।  उस के बाद मेरी पत्नी ने मुझ पर घरेलू हिंसा का मुकदमा कर दिया।  जिस का निर्णय यह हुआ कि प्रार्थना पत्र आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया गया।  मुझ पर जो आरोप पत्नी ने लगाए उन्हें वह साबित नहीं कर सकी।  न्यायालय ने मुझे आवेदन प्रस्तुत करने की तिथि से रुपए 1000/- प्रतिमाह गुजारा भत्ता अपनी पत्नी को देने का आदेश दिया।  उस के बाद पत्नी ने धारा 125 दं.प्र.संहिता के अंतर्गत आवेदन प्रस्तुत कर दिया है, जिस में उस ने यह मिथ्या तथ्य अंकित किया है कि मेरी आमदनी एक लाख रुपया बताई है।  पिछले एक साल से पत्नी पेशी पर नहीं आ रही है, जानबूझ कर केस लटका रखा है।  इस दौरान भी मैं ने उसे खूब समझाया पर वह मानने को तैयार नहीं है।  अब मेरे ससुर ने मुझे धमकी दी है कि मैं ने अपने परिवार को नहीं त्यागा तो मेरे ऊपर 498 ए भा. दंड संहिता सहित चार मुकदमे और लगवा देंगे।  मेरे कोई संतान भी नहीं है।  मैं बहुत परेशान हूँ।  मुझे क्या करना चाहिए?
-जयप्रकाश नारायण, शिमला, हिमाचल प्रदेश
समाधान
यह आजकल एक आम समस्या हो चली है।  अधिकांश पतियों की शिकायत यही होती है कि पत्नी को उस के माता-पिता ने भड़काया और वह पति को छोड़ कर चली गई।  उस का कहना है कि परिवार छोड़ कर अलग रहो तो आएगी। मना करने पर वह मुकदमा कर देती है।  लेकिन यह जानने की कोशिश कोई नहीं करता कि ऐसा क्यों हो रहा है? समस्या के आरंभ में ही यह जानने की कोशिश की जाए और काउंसलिंग का सहारा लिया जाए तो ऐसी समस्याएँ उसी स्तर पर हल की जा सकती हैं।  लेकिन आरंभ में पति-पत्नी दोनों ही अपनी जिद पर अड़े रहते हैं, मुकदमे होने पर समस्या गंभीर रूप धारण कर लेती है।  दोनों और इतना दुराग्रह हो जाता है कि समस्या का कोई हल नहीं निकल पाता है।
तीसरा खंबा को पति की ओर से इस तरह की शिकायत मिलती है तो उन में अधिकांश में पत्नी और उस के मायके वालों का ही दोष बताया जाता है।  पति कभी भी अपनी या अपने परिवार वालों की गलती नहीं बताता।  जब कि ऐसा नहीं होता।  ये समस्याएँ आरंभ में मामूली होती हैं जिन्हें आपसी समझ से हल किया जा सकता है।  ये दोनों ओर से होने वाली गलतियों से गंभीर होती चली जाती हैं और एक स्तर पर आ कर ये असाध्य हो जाती हैं।  आरंभ में पत्नी अपनी शिकायत पति से ही करती है।  ये शिकायतें अक्सर पति के परिवार के सदस्यों के व्यवहार से संबंधित होती हैं।  पहले पहल तो पति इन शिकायतों को सुनने से ही इन्कार कर देता है और पत्नी को ही गलत ठहराता है।  दूसरे स्तर पर जब वह थोड़ा बहुत यह मानने लगता है कि गलती उस के परिवार के किसी सदस्य की है तो वह अपने परिवार के किसी सदस्य को समझाने के स्थान पर अपनी पत्नी से ही सहने की अपेक्षा करता है।  यदि आरंभ में ही पत्नी की शिकायत या समस्या को गंभीरता से लिया जाए और दोनों मिल कर उस का हल निकालने की ओर आगे बढ़ें तो ये समस्याएँ गंभीर होने के स्थान पर हल होने लगती हैं।
हमें लगता है कि यदि इस स्तर पर भी काउंसलिंग के माध्यम से प्रयत्न किया जाए आप की समस्या भी हल हो सकती है।  काउंसलिंग जिन न्यायालयों में मुकदमे चल रहे हैं उन से आग्रह कर के उन के माध्यम से भी आरंभ की जा सकती है।  काउंसलर के सामने दोनों अपनी समस्याएँ रखें और उन्हें मार्ग सुझाने के लिए कहें।  काउंसलर दोनों को अपने अपने परिजनों के प्रभाव से मुक्त कर के दोनों की गृहस्थी को बसाने का प्रयत्न कर सकते हैं।  खैर¡
किसी भी कार्य को करने के लिए किसी व्यक्ति को यह धमकी देना कि अन्यथा वह उसे फर्जी मुकदमों में फँसा देगा, भारतीय दंड संहिता की धारा 503 के अंतर्गत परिभाषित अपराधिक अभित्रास (Criminal Intimidation) का अपराध है। धारा 506 के अंतर्गत ऐसे अपराध के लिए दो वर्ष के कारावास का या जुर्माने का या दोनों से दंडित किया जा सकता है।  आप को पत्नी और उस के माता-पिता ने यह धमकी दी है कि वे आप के विरुद्ध फर्जी मुकदमे लगा देंगे।  यदि आप यह सब न्यायालय में साक्ष्य से साबित कर सकते हैं कि उन्हों ने ऐसी धमकी दी है तो आप को तुरंत धारा 506 भा.दं.संहिता के अंतर्गत मजिस्ट्रेट के न्यायालय के समक्ष परिवाद प्रस्तुत करना चाहिए।  जिस से बाद में पत्नी और उस के माता-पिता द्वारा ऐसा कोई भी मुकदमा कर दिए जाने पर आप प्रतिरक्षा कर सकें।  ऐसा परिवाद प्रस्तुत कर देने के उपरान्त आप को अपने वकील से एक नोटिस अपनी पत्नी को दिलाना चाहिए जिस में यह बताना चाहिए कि उस का स्त्री-धन आप के पास सुरक्षित है और कभी भी वह स्वयं या अपने विधिपूर्वक अधिकृत प्रतिनिधि को भेज कर प्राप्त कर सकती हैं।  इस से आप धारा 406 भारतीय दंड संहिता के अपराधिक न्यास भंग के अपराध में प्रतिरक्षा कर सकेंगे। इस के साथ ही आप हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 9 के अंतर्गत पत्नी के विरुद्ध दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना के लिए भी आवेदन प्रस्तुत करना चाहिए।